मंगलवार, 23 जुलाई 2019

gazal

ग़ज़ल- भरी थी भीड़ जो मुझमें हटा रहा हूँ अब कि ख़ुद को ढूँढ़ के ख़ुद ही में ला रहा हूँ अब जो मुझमें तुम थे उसी को भुला रहा हूँ अब मैं ख़ुद को याद बहुत याद आ रहा हूँ अब बहुत ही शोर था उसका जो मेरे अंदर था ख़मोश करके उसे दूर जा रहा हूँ अब निकल गई है कोई शय जो मेरे अंदर थी उसी का ग़म है कि सबको रुला रहा हूँ अब वो दुनिया छोड़ चला जिसको मैं अखरता था इसी ख़ुशी का तो मातम मना रहा हूँ अब ये फ़न दिया है मुझे मयकशी ने बदले में चराग़ आँखों के अपनी जला रहा हूँ अब ग़ज़लकार-सैफुर्रहमान यूनुस 'सैफ़' समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल एप से ग़ज़लें पायें|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

छोटे कदम, बड़ी मंज़िल

छोटे कदम, बड़ी मंज़िल भाग 1: सपना और सच्चाई किसी छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था— अर्जुन । वह गरीब था लेकिन उसके सपने बड़े थे।...