ग़ज़ल- भरी थी भीड़ जो मुझमें हटा रहा हूँ अब कि ख़ुद को ढूँढ़ के ख़ुद ही में ला रहा हूँ अब जो मुझमें तुम थे उसी को भुला रहा हूँ अब मैं ख़ुद को याद बहुत याद आ रहा हूँ अब बहुत ही शोर था उसका जो मेरे अंदर था ख़मोश करके उसे दूर जा रहा हूँ अब निकल गई है कोई शय जो मेरे अंदर थी उसी का ग़म है कि सबको रुला रहा हूँ अब वो दुनिया छोड़ चला जिसको मैं अखरता था इसी ख़ुशी का तो मातम मना रहा हूँ अब ये फ़न दिया है मुझे मयकशी ने बदले में चराग़ आँखों के अपनी जला रहा हूँ अब ग़ज़लकार-सैफुर्रहमान यूनुस 'सैफ़' समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल एप से ग़ज़लें पायें|
ये एक hindi news blog है। जहाँ आपको art, hindi new, technology, quote, hindi shayeri, गेजेड,story, photography, videography, etc... का new new post update होता है आपके लिए ।
मंगलवार, 23 जुलाई 2019
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कछुआ और खरगोशकहानी
कहानी: एक बार दो दोस्त जंगल से जा रहे थे। रास्ते में एक भालू आ गया। एक दोस्त पेड़ पर चढ़ गया और दूसरा ज़मीन पर लेट गया, साँस रोककर मरने का न...
-
WhatsApp में अपने किस से कितनी बात की है ऐसे पता चलेगा - आज हम जानेगें के व्हाट्सएप्प के एक ऐसे फीचर्स के बारे में जो शायद आपक...
-
सच्ची मित्रता का महत्व एक गाँव में दो दोस्त, रामू और श्यामू, रहते थे। दोनों बचपन से साथ खेलते और पढ़ते थे। रामू बहुत समृद्ध था...
-
छोटे कदम, बड़ी मंज़िल भाग 1: सपना और सच्चाई किसी छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था— अर्जुन । वह गरीब था लेकिन उसके सपने बड़े थे।...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें