ग़ज़ल- जला है दिल जलाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है तुम्हें पाया गँवाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है सज़ा ये थी कि मुझको छोड़ देना था यूँ ही तनहा चले आये बुलाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है कहाँ कुछ ख़ास ऐसा था कि मर जाता तुम्हारे बिन रहा बैचेन जाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है बड़ा आसान था मैं तोड़ देता प्यार का रिश्ता लगा हूँ मैं निभाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है ज़माना चाहता था दूर करना बस तुम्हें मुझसे रहा भारी ज़माने पर सुनो ये ही मुहब्बत है कहानी ख़त्म होते ही उठा पर्दा हक़ीक़त से यकीं आया दिवाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है हवाएँ ले उड़ी थीं साथ अपने उस परिंदे को चला आया ठिकाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है ग़ज़लकार-विवेक 'बिजनौरी' समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल एप से ग़ज़लें पायें|
एक गाँव में एक युवक था जिसका नाम आदित्य था। उसका आदर्श चरित्र और ईमानदारी के कारण गाँववाले उसे पसंद करते थे। एक दिन, गाँव में एक रहस्यमय मुद्दा सामने आया।गाँव के प्रमुख ने सभी गाँववालों को सभी संबंधित विवाद को हल करने के लिए एक सभा बुलाई। वहां आदित्य भी मौजूद था। सभा में एक अजीब सी तनाव था, और रहस्यमय तरीके से गाँव के सभी लोग इसमें शामिल थे।विवाद की जड़ एक बड़े धनाढ्य व्यापारी के साथ थी, जिसने गाँववालों के साथ नैतिक अनैतिकता का आरोप लगाया था। सभी को इस आरोप के लिए चरित्रमान रखने का आदान-प्रदान करना था।आदित्य ने इस स्थिति को समझते हुए अपने आदर्शों के लिए खड़ा होने का निर्णय लिया और अपने साक्षात्कार के दौरान एक रहस्यमय तथ्य को उजागर किया।समझदारी और सटीकता से आदित्य ने सबूत प्रस्तुत किए और यह सिद्ध किया कि आरोप अनधिकृत था। सभी ने आदित्य की सामर्थ्यवर्धन की सराहना की और गाँव में नैतिकता और इमानदारी के महत्व को फिर से महसूस किया।इसके परिणामस्वरूप, गाँव में सब फिर से एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने लगे और वहां की सामाजिक सजगता में सुधार हुआ। आदित्य की सच्चाई ने न केवल गाँववालों के
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