ग़ज़ल- जला है दिल जलाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है तुम्हें पाया गँवाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है सज़ा ये थी कि मुझको छोड़ देना था यूँ ही तनहा चले आये बुलाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है कहाँ कुछ ख़ास ऐसा था कि मर जाता तुम्हारे बिन रहा बैचेन जाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है बड़ा आसान था मैं तोड़ देता प्यार का रिश्ता लगा हूँ मैं निभाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है ज़माना चाहता था दूर करना बस तुम्हें मुझसे रहा भारी ज़माने पर सुनो ये ही मुहब्बत है कहानी ख़त्म होते ही उठा पर्दा हक़ीक़त से यकीं आया दिवाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है हवाएँ ले उड़ी थीं साथ अपने उस परिंदे को चला आया ठिकाने पर सुनो ये ही मुहब्बत है ग़ज़लकार-विवेक 'बिजनौरी' समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल एप से ग़ज़लें पायें|
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